कश्मीर का दर्द: पहलगाम हमले के बाद स्थानीय लोगों की आवाज़

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कश्मीर की खूबसूरत वादियाँ, जो अपने मेहमाननवाज़ी के लिए मशहूर हैं, आज सदमे और ग़म में डूबी हैं। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 मासूम पर्यटकों की मौत ने पूरे कश्मीर को झकझोर दिया है।

Kashmir“हम उभर रहे थे, लेकिन इस हमले ने हमारा भविष्य खराब कर दिया”

जब-जब कश्मीर में पर्यटन बढ़ता है, कोई न कोई घटना हो जाती है जो सब कुछ तबाह कर देती है। हम आगे बढ़ रहे थे, पर्यटकों का स्वागत कर रहे थे। लेकिन इस हमले ने हमारे नाम पर एक दाग़ लगा दिया है।

कश्मीरी दिल से साफ़ लोग हैं—हर किसी का स्वागत करते हैं। लेकिन किसी ने कश्मीर की बदनामी की है, और मैं दावे से कहता हूँ, यह कोई कश्मीरी नहीं था। कोई कश्मीरी ऐसा नहीं कर सकता।

कल से किसी कश्मीरी ने ठीक से खाना नहीं खाया। बच्चे डरे हुए हैं, ठीक से सो नहीं पा रहे। यह सिर्फ़ हमारी बात नहीं है—यह हमारे भविष्य की बात है। असली दर्द व्यापार का नुकसान नहीं है (हालाँकि वह भी हुआ है), असली दर्द उन मासूम लोगों की जान जाने का है।

“पर्यटकों को क्यों निशाना बनाया? यह कश्मीर को बदनाम करने की साजिश है”

कश्मीर का व्यापार पर्यटन पर टिका है—शॉल बेचने वाले, सब्ज़ी वाले, टैक्सी ड्राइवर, होटल चलाने वाले—सब इसी पर निर्भर हैं। जब-जब पर्यटक आते हैं, ऐसी कोई घटना हो जाती है। क्यों?

यह सिर्फ़ हमला नहीं था—यह एक संदेश था: “कश्मीर मत आओ।” आतंकी कश्मीर को ख़तरनाक बताना चाहते हैं, लेकिन हम उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे।

एक स्थानीय व्यापारी, तारिक़ अहमद, ने कहा:
“हम इस हमले की निंदा करते हैं। अगर पाकिस्तान का हाथ है, तो उस पर कार्रवाई करो। लेकिन कश्मीरियों को दोष मत दो। हम पीड़ितों के साथ हैं।”

“हमारा दर्द असहनीय है—कल से सोए नहीं हैं”

दर्द सभी का एक जैसा है। हिंदू, मुस्लिम, सिख—सभी मिलकर शोक मना रहे हैं। पीड़ित हमारे मेहमान थे, और कश्मीर में मेहमान को भगवान का दर्जा दिया जाता है।

एक शॉल विक्रेता, आँखों में आँसू लिए, बोला:
“व्यापार आता-जाता रहता है, लेकिन जानें नहीं लौटतीं। जिन्होंने अपनों को खोया है, उनका दर्द हम समझते हैं। कल से किसी कश्मीरी ने ठीक से खाना नहीं बनाया।”

“सुरक्षा में चूक? यह हमला कैसे हो गया?”

कश्मीर में 6 लाख से ज़्यादा सुरक्षाकर्मी, ड्रोन और मॉडर्न टेक्नोलॉजी के बावजूद आतंकी कैसे घुस आए? पहलगाम जैसे पर्यटक स्थल की सुरक्षा कहाँ थी?

एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सवाल उठाया:
“सुरक्षा बल हमारी सुरक्षा के लिए हैं, लेकिन जब पर्यटकों को ज़रूरत पड़ी, तो वे कहाँ थे?”

“कश्मीरी आतंकी नहीं हैं—ग़लत प्रचार बंद करो”

मीडिया तुरंत स्थानीय लोगों को दोषी ठहराता है, लेकिन कश्मीरी ख़ुद आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं। हम हिंसा को नहीं मानते।

एक टैक्सी ड्राइवर, ग़ुस्से में, बोला:
“90 के दशक से हमने ख़ून देखा है। लेकिन आज कश्मीर सुधर रहा था। अब बाहर वाले हमें फिर तोड़ना चाहते हैं।”

पर्यटकों की आवाज़: “हमें सुरक्षित लग रहा था, लेकिन…”

दिल्ली से आए विपिन गौतम ने बताया:
“स्थानीय लोगों ने हमें परिवार जैसा महसूस कराया। एक ने तो होटल न मिलने पर अपने घर बुला लिया। लेकिन इस हमले के बाद डर बैठ गया है।”

गुजरात से आए एक पर्यटक ने कहा:
“हम पहलगाम में थे जब यह हुआ। अस्पताल में घायलों को ले जाते देखा… अब बस घर जाना चाहते हैं।”

दुनिया से अपील

कश्मीरी एकजुट हैं। हम पीड़ितों के साथ हैं, आतंकियों के नहीं। यह हमला सिर्फ़ पर्यटकों पर नहीं, बल्कि कश्मीर की आत्मा पर हुआ है।

मीडिया से: डर फैलाना बंद करो।
सरकार से: दोषियों को सज़ा दो।
पर्यटकों से: डर के आगे हार मत मानो। कश्मीर को आपकी ज़रूरत है।

अंत में…

कश्मीर फिर उठेगा। लेकिन आज, हम शोक में हैं।

“अगर आप आज कश्मीर को छोड़ देंगे, तो आतंकी जीत जाएँगे।”

#कश्मीर_के_साथ #आतंकवाद_को_नहीं

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